Saturday, April 23, 2016

दो चाबियां

एक दिन मेरे और ऐक जान पहचान वाले से अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई तक़दीर और तदबीर की, मैंने सोचा आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते है। मेरा सवाल था आदमीं मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से, उसके दिये जवाब से मेरे दिमाग़ के जाले साफ़ ही गए, कहने लगा आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा उसकी चाबियाँ भी होगी, ? मैंने कहा हाँ है । उसने कहा तो आपको यह भी पता होगा कि हर लाकर की दो चाबियाँ होती है एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास  और जब तक दोनों चाबियाँ नहीं लगती तब तक ताला नहीं खुलता और ऐक बात , पहले आप की चाबी अंदर डाली जाती है और। बाद मे मैनेजर अपनी चाबी लगाता है । मैंने कहा बिलकुल ठीक  फिर वो बड़े दार्शनिक अन्दाज़ में बोला : अपने पास जो चाबी है वह है परिश्रम  की और मैनेजर के पास वाली भाग्य की .. जब तक दोनों नहीं लगती ताला नही खुल सकता ।आप करम योगी पुरुष है और मैनेजर भगवान,अपन को अपनी चाबी लगाते रहना चाहिये, पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाबी लगा दे और कही ऐसा न हो की भगवान अपनी भाग्यवाली चाबी लगा रहा हो ,हम परिश्रम वाली चाबी लगा ही ना  पाये और ताला खुलने से रह जाये।

मैंने उसके चरण स्पर्श किये और अपने घर आ गया .

contributed by
Sh Sanjeev ji

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