Thursday, March 31, 2016

The Reflection

eOnce a dog ran into a museum where all the walls, the ceilng, the door and even the floor were made of mirror.  Seeing this the dog froze in surprise in the middle of the hall, a whole pack of dogs surrounded it from all sides, from above and below. Just in case, the dog bared his teeth, all the reflections responded to it in the same way. Frightened, the dog frantically barked .The reflections imitated the bark and increased it many times. The dog barked even harder and the echo was keeping up. The dog tossed from one side to another, biting the air - his reflections also tossed around snapping their teeth Next day in the morning, the museum security guards found the miserable dog, lifeless and surrounded by a million reflections of lifeless dogs.  There was nobody, who would make any harm to the dog.  The dog died by fighting with his own reflections. The world doesn't bring good or evil on its own. Everything that is happening around us is the reflection of our own thoughts , feelings, wishes and actions. The World is a big mirror.
Strike a good pose!
Smile from deep within.
Life is beautiful..

Contributed by

Ms Nita ji

On Duty

यूरोपियन एयरलाइन में एक गुरू प्रेमी सिख
नौजवान फर्स्ट क्लास सेक्शन में सफ़र कर
रहा था ! एयर होस्टेस उसके पास आई और उसने मुफ़्त ड्रिंक ऑफर किया।लेकिन चूँकि वो एल्केहोल ड्रिंक था प्रेमी नौजवान ने लेने से मना कर दिया एयर होस्टेस लौट गयी लेकिन वो वापस आई नया ड्रिंक लेकर कुछ अलग अंदाज़ से की ड्रिंक ज्यादा अच्छा नज़र आये लेकिन नौजवान ने विनम्रता से मना कर दिया और बोला की वो एल्कोहोल नही लेता एयर होस्टेस को बड़ा अजीब लगा और वो मेनेजर के पास गयी मेनेजर ने एक ड्रिंक तैयार किया और उसे फूलों से सजा कर प्रेमी नौजवान के सामने पेश किया और बोली की हमारी सर्विस में आपको कोई कमी लगती हे कि जिस वजह से आप ड्रिंक नही ले रहे ये एक complimentary ऑफर हे नौजवान ने जवाब दिया मै सतगुरू का प्रेमी हूँ तो में एल्कोहोल को छूता भी नही पीना तो बहुत दूर की बात हे .मेनेजर ने इसे अपना प्रेस्टीज पॉइंट बना। लिया और ड्रिंक लेने की जिद करने लगातब प्रेमी नौजवान ने कहा की तुम पहले पायलट को पिलाओ फिर में पियूँगा .मेनेजर बोला की पायलट कैसे पी सकता हे ? वो ओन ड्यूटी हे और अगर उसने पी लिया तो पूरे चांसेस हे की प्लेन क्रेश हो जाएगा  नौजवान की आँखे नम हो गयी ,वो बोला मैं भी हमेशा ड्यूटी पर हूँ और मेरी डयूटी है कि मुझे अपने गुरु जी के वचनो की पालना करनी है जैसे कि तुम्हारे पायलट को हर हाल में विमान बचाना है उसी तरह से मुझे मेरा ईमान बचाना हे .ईमान बचाना और जिंदगी संवारनी हे

Contributed by
Mr Kamaljeet ji

शमशान की सैर

ऐसा कहते हैं कि नानक देव जी जब आठ वर्ष के थे तब पहली बार अपने घर से अकेले निकल पड़े, सब घर वाले और पूरा गाँव चिंतित हो गया तब शाम को किसी ने नानक के पिता श्री कालू मेहता को खबर दी कि नानक तो श्मशान घाट में शांत बैठा है। सब दौड़े  और वाकई एक चिता के कुछ दूर नानक बैठे हैं और एक अद्भुत शांत मुस्कान के साथ चिता को देख रहे थे, माॅ ने तुरंत रोते हुए गले लगा लिया और पिता ने नाराजगी जताई और पूछा यहां क्यों आऐ। नानक ने कहा पिता जी कल खेत से आते हुए जब मार्ग बदल कर हम यहां से जा रहे थे और मैंने देखा कि एक आदमी चार आदमीयो के कंधे पर लेटा है और वो चारो रो रहे हैं तो मेरे आपसे पूछने पर कि ये कौन सी जगह हैं, तो पिताजी आपने कहा था कि ये वो जगह है बेटा जहां एक न एक दिन सबको आना ही पड़ेगा और बाकी के लोग रोएगें ही।

बस तभी से मैनें सोचा कि जब एक दिन आना ही हैं तो आज ही चले और वैसे भी अच्छा नही हैं लगता अपने काम के लिए अपने चार लोगो को रूलाना भी और कष्ट भी दो उनके कंधो को , तो बस यही सोच कर आ गया।

तब कालू मेहता रोते हुए बोले नानक पर यहां तो मरने के बाद आते हैं इस पर जो आठ वर्षीय नानक बोले वो कदापि कोई आठ जन्मो के बाद भी बोल दे तो भी समझो जल्दी बोला

" नानक ने कहा पिता जी ये ही बात तो मैं सुबह से अब तक मे जान पाया हूं कि लोग मरने के बाद यहां लाए जा रहे हैं , अगर कोई पूरे चैतन्य से यहां अपने आप आ जाऐ तो वो फिर  कभी मरेगा ही नही सिर्फ शरीर बदलेगा क्योंकि मरता तो अंहकार है और जो यहां आकर अपने अंहकार कि चिता जलाता है वो फिर कभी मरता ही नही मात्र मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।

Contributed by
Mr Kamaljeet ji

Tuesday, March 29, 2016

Your time will come

Kenya is two hours ahead of Nigeria, but it does not mean that Nigeria is slow, and it does not mean that Kenya is faster than Nigeria. Both countries are working based on their own "Time Zone."

Some one is still single..Someone got married and 'waited' ten years before having a child, there is another who  had a baby within one year after marriage.

Someone graduated at the age of 22, yet waited 5 years before securing a job; and there is another who graduated at the age of 27 and secured employment just after national service.

Someone became CEO at the age of 25 and died at the age of 50 while another became a CEO at the age of 50 and lived to 90 years.

Everyone worked based on their 'Time Zone'..
Some people have everything that work fast for them. Work in your “time zone”.

Colleagues, friends, associates, younger one(s) might "seem" to go ahead of you. Don't envy them, it's their 'Time Zone.'. Yours is coming soon. Hold on, be strong, and stay true to yourself. All things shall work together for your good. You’re not late… you’re on time!

Contributed by
Mrs Shruti Chaabra ji

मांग

पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।
अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पे मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया। भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, ” अब तुम्हे क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना के मैं पुनः संसार में भेजूं।”
भगवान की बात सुनकर उनमे से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, ” हे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”
उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, ” तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हे क्या बनाऊँ।”
भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, ” भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारो तरफ से पैसा ही पैसा मिले।”
अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान से उसकी बात सुनी और कहा, ” तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”
उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, ” तुम बताओ तुम्हे क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?”
उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ” हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपे मेहनत से काम करके मैंने अपना परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पे कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे। भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”
भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, ” तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।” किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, ” हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।” भगवान ने कहा, “तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”
अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।
पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारो तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।
और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।

Sunday, March 27, 2016

A thought

A man who has gone out of his town comes back and finds that his house is on fire.

It was one of the most beautiful houses in the town, and the man loved the house the most! Many people were ready to give double price for the house, but he had never agreed for any price and now it is just burning before his eyes.

And thousands of people have gathered, but nothing can be done, the fire has spread so far that even if you try to put it out, nothing will be saved. So he becomes very sad.

His son comes running and whispers something in his ear:

"Don't be worried. I sold it yesterday and at a very good price ― three times.The offer was so good I could not wait for you. Forgive me."

Father said, "thank God, it's not ours now!"  Then the father is relaxed and became a silent watcher, just like 1000s of other watchers.

Please think about it! Just a moment before he was not a watcher, he was attached. It is the same house....the same fire.... everything is the same...but now he is not concerned. In fact started enjoying it just as everybody else in the crowd.

Then the second son comes running, and he says to the father, "What are you doing? You are smiling ― and the house is on fire?" The father said, "Don't you know, your brother has sold it."
He said, "we have taken only advance amount, not settled fully. I doubt now that the man is going to purchase it now."

Again, everything changes!!

Tears which had disappeared, have come back to the father's eyes, his smile is no more there, his heart is beating fast. The 'watcher' is gone. He is again attached.

And then the third son comes, and he says, "That man is a man of his word. I have just come from him. He said, 'It doesn't matter whether the house is burnt or not, it is mine.
And I am going to pay the price that I have settled for. Neither you knew, nor I knew that the house would catch on fire.'"

Again the joy is back and family became 'watchers'! The attachment is no more there.

Actually nothing is changing!

just the feeling that "I am the owner! I am not the owner of the house!" makes the whole difference.

This simple methodology of watching the mind, that you have nothing to do with it..Everything starts with a Thought !

Most of the thoughts are not yours but from your parents, your teachers, your friends, the books, the movies, the television, the newspapers. Just count how many thoughts are your own, and you will be surprised that not a single thought is your own. All are from other sources, all are borrowed ― either dumped by others on you, or foolishly dumped by yourself upon yourself, but nothing is yours.

Sow a thought, you reap an action.
Sow an act, you reap a habit.
Sow a habit, you reap a character.
Sow a character, you reap a destiny..!

Contributed by
Ms. Nita ji & Mrs Shruti Chaabra ji

A thought

A man who has gone out of his town comes back and finds that his house is on fire.

It was one of the most beautiful houses in the town, and the man loved the house the most! Many people were ready to give double price for the house, but he had never agreed for any price and now it is just burning before his eyes.

And thousands of people have gathered, but nothing can be done, the fire has spread so far that even if you try to put it out, nothing will be saved. So he becomes very sad.

His son comes running and whispers something in his ear:

"Don't be worried. I sold it yesterday and at a very good price ― three times.The offer was so good I could not wait for you. Forgive me."

Father said, "thank God, it's not ours now!"  Then the father is relaxed and became a silent watcher, just like 1000s of other watchers.

Please think about it! Just a moment before he was not a watcher, he was attached. It is the same house....the same fire.... everything is the same...but now he is not concerned. In fact started enjoying it just as everybody else in the crowd.

Then the second son comes running, and he says to the father, "What are you doing? You are smiling ― and the house is on fire?" The father said, "Don't you know, your brother has sold it."
He said, "we have taken only advance amount, not settled fully. I doubt now that the man is going to purchase it now."

Again, everything changes!!

Tears which had disappeared, have come back to the father's eyes, his smile is no more there, his heart is beating fast. The 'watcher' is gone. He is again attached.

And then the third son comes, and he says, "That man is a man of his word. I have just come from him. He said, 'It doesn't matter whether the house is burnt or not, it is mine.
And I am going to pay the price that I have settled for. Neither you knew, nor I knew that the house would catch on fire.'"

Again the joy is back and family became 'watchers'! The attachment is no more there.

Actually nothing is changing!

just the feeling that "I am the owner! I am not the owner of the house!" makes the whole difference.

This simple methodology of watching the mind, that you have nothing to do with it..Everything starts with a Thought !

Most of the thoughts are not yours but from your parents, your teachers, your friends, the books, the movies, the television, the newspapers. Just count how many thoughts are your own, and you will be surprised that not a single thought is your own. All are from other sources, all are borrowed ― either dumped by others on you, or foolishly dumped by yourself upon yourself, but nothing is yours.

Sow a thought, you reap an action.
Sow an act, you reap a habit.
Sow a habit, you reap a character.
Sow a character, you reap a destiny..!

Contributed by
Ms. Nita ji

Saturday, March 26, 2016

भृतहरि की कथा

पुराने जमाने में एक राजा हुए थे, भर्तृहरि। वे कवि भी थे। उनकी पत्नी अत्यंत रूपवती थीं। भर्तृहरि ने स्त्री के सौंदर्य और उसके बिना जीवन के सूनेपन पर 100 श्लोक लिखे, जो श्रृंगार शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं।

उन्हीं के राज्य में एक ब्राह्मण भी रहता था, जिसने अपनी नि:स्वार्थ पूजा से देवता को प्रसन्न कर लिया। देवता ने उसे वरदान के रूप में अमर फल देते हुए कहा कि इससे आप लंबे समय तक युवा रहोगे।

ब्राह्मण ने सोचा कि भिक्षा मांग कर जीवन बिताता हूं, मुझे लंबे समय तक जी कर क्या करना है। हमारा राजा बहुत अच्छा है, उसे यह फल दे देता हूं। वह लंबे समय तक जीएगा तो प्रजा भी लंबे समय तक सुखी रहेगी। वह राजा के पास गया और उनसे सारी बात बताते हुए वह फल उन्हें दे आया।

राजा फल पाकर प्रसन्न हो गया। फिर मन ही मन सोचा कि यह फल मैं अपनी पत्नी को दे देता हूं। वह ज्यादा दिन युवा रहेगी तो ज्यादा दिनों तक उसके साहचर्य का लाभ मिलेगा। अगर मैंने फल खाया तो वह मुझ से पहले ही मर जाएगी और उसके वियोग में मैं भी नहीं जी सकूंगा। उसने वह फल अपनी पत्नी को दे दिया।

लेकिन, रानी तो नगर के कोतवाल से प्यार करती थी। वह अत्यंत सुदर्शन, हृष्ट-पुष्ट और बातूनी था। अमर फल उसको देते हुए रानी ने कहा कि इसे खा लेना, इससे तुम लंबी आयु प्राप्त करोगे और मुझे सदा प्रसन्न करते रहोगे। फल ले कर कोतवाल जब महल से बाहर निकला तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है। और यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। इसे मैं अपनी परम मित्र राज नर्तकी को दे देता हूं। वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती। मैं उससे प्रेम भी करता हूं। और यदि वह सदा युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी। उसने वह फल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया।

राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप वह अमर फल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पाप भरा जीवन लंबा जीना चाहेगा। हमारे देश का राजा बहुत अच्छा है, उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोच कर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस फल की महिमा सुना कर उसे राजा को दे दिया। और कहा कि महाराज, आप इसे खा लेना।

राजा फल को देखते ही पहचान गया और भौंचक रह गया। पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो उसे वैराग्य हो गया और वह राज-पाट छोड़ कर जंगल में चला गया। वहीं उसने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे जो कि वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं। यही इस संसार की वास्तविकता है। एक व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे। परंतु विडंबना यह कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है।

इसका कारण यह है कि संसार व इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सब में कुछ न कुछ कमी है। सिर्फ एक ईश्वर पूर्ण है। एक वही है जो हर जीव से उतना ही प्रेम करता है, जितना जीव उससे करता है। बस हमीं उसे सच्चा प्रेम नहीं करते। गीता में कृष्ण ने यही समझाया है कि जो मुझ से प्रेम करता है, मैं उसका योगक्षेम वहन करता हूं -अर्थात उनके पास जिस वस्तु की कमी है, वह देता हूं और हर प्रकार से उसकी रक्षा करता हूं।

Contributed by
Sh Tejveer ji

पूर्व जन्म

सतान के रूप में कौन आता है ? पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में
माता-पिता,
भाई बहिन,
पति-पत्नि,
प्रेमिका,
मित्र-शत्रु,
सगे-सम्बंधी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते है, सब मिलते है ।
क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है, या इनसे कुछ लेना होता है ।

वेसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्वजन्म का ‘सम्बन्धी’ ही आकर जन्म लेता है ।

जिसे शास्त्रों में चार प्रकार का बताया गया है :-

1. ऋणानुबन्ध :-
पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धननष्ट किया हो, तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो ।

2. शत्रु पुत्र :-
पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोल कर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रख कर खुश होगा ।

3. उदासीन पुत्र :-
इस प्रकार की ‘सन्तान’, ना तो माता-पिता की सेवा करती है, और ना ही कोई सुख देती है और उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं ।

4. सेवक पुत्र :-
पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है, तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिये, आपकी सेवा करने के लिये पुत्र बन कर आता है । जो बोया है, वही तो काटोगे, अपने माँ-बाप की सेवा की है, तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी । वरना कोई पानी पिलाने वाला भी पास ना होगा ।

आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती है । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है ।

जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है ।
यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया हो तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी ।
यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा । “इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं करें ।”क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म या अगले जन्म में, सौ गुना करके देगी । यदि आपने किसी को एक रूपया दिया है, तो समझो आपके खाते में सौ रूपये जमा हो गये है।यदि आपने किसी का एक रूपया छीना है, तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रूपये निकल गये।

Contributed by
Sh Sanjeev ji

Four Principles

It is not important whether you believe in spirituality or not, the four principles of spirituality apply to all from the moment one is born and will remain there till the end!

Four principles of spirituality


The First Principle states:

"Whomsoever you encounter is the right one"

This means that no one comes into our life by chance. Everyone who is around us, anyone with whom we interact, represents something, whether to teach us something or to help us improve a current situation.


The Second Principle states:

"Whatever happened is the only thing that could have happened"

Nothing, absolutely nothing of that which we experienced could have been any other way. Not even in the least important detail. There is no "If only I had done that differently, then it would have been different". No. What happened is the only  thing that could have taken place and must have taken place for us to learn our lesson in order to move forward. Every single situation in life which we encounter is absolutely perfect, even when it defies our understanding and our ego.


The Third Principle states:

"Each moment in which something begins is the right moment"

Everything begins at exactly the right moment, neither earlier nor later. When we are ready for it, for that something new in our life, it is there, ready to begin.


The Fourth Principle states:

"What is over, is over"

It is that  simple. When something in our life ends, it helps our evolution. Thnat is why, enriched by the recent experience, it is better to let go and move on.


Think it is no coincidence that you're here reading this.

If these words strike a chord, it's because you meet the requirements and understand that not one single snowflake falls accidentally in the wrong place!

Contributed by
Mrs Richa Uttreja ji

Tuesday, March 22, 2016

चार रत्न

एक वृद्ध संत ने अपनी अंतिम घड़ी नज़दीक देख अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा: मैं तुम बच्चों को चार कीमती रत्न दे रहा हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम इन्हें सम्भाल कर रखोगे और पूरी ज़िन्दगी इनकी सहायता से अपना जीवन आनंदमय तथा श्रेष्ठ बनाओगे।

1~पहला रत्न है: "माफी"
तुम्हारे लिए कोई कुछ भी कहे, तुम उसकी बात को कभी अपने मन में न बिठाना, और ना ही उसके लिए कभी प्रतिकार की भावना मन में रखना, बल्कि उसे माफ़ कर देना।

2~दूसरा रत्न है: "भूल जाना"
अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किए गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद मन में न रखना।

3~तीसरा रत्न है: "विश्वास"
हमेशा अपनी महेनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते जब तक उस सृष्टि नियंता के विधान में नहीँ लिखा होगा। परमपिता परमात्मा पर रखा गया विश्वास हि तुम्हें जीवन के हर संकट से बचा पाएगा और सफल करेगा।

4~चौथा रत्न है: "वैराग्य"
हमेशा यह याद रखना कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निशिचत हि हमें एक दिन मरना ही है। इसलिए किसी के लिए अपने मन में लोभ-मोह न रखना।

मेरे बच्चों जब तक तुम ये चार रत्न अपने पास सम्भालकर रखोगे, तुम खुश और प्रसन्न रहोगे।

सच में ये रत्न बहुमूल्य नहीं अनमोल हैं। इन्हें यत्नपूर्वक धारण कर लिया तो फिर सारे रत्न आदि तो कंकड़-पत्थर ही हैं।

Contributed by
Mrs Jyotsna ji

तुलना

एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बागीचे में सैर करने गया , पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं । राजा बहुत चिंतित हुआ, वह इसकी वजह जानने के लिए सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।

ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी।

राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था।

राजा ने उससे पूछा , ” बड़ी अजीब बात है , मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुए बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?”

पेड़ बोला , ” महाराज , बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं , जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं , यदि आप इस स्थान पर ओक , अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ । “

Contributed by
Mrs Rashmi ji

गुरु स्मरण

एक  कबूतर कबूतरनी का जोड़ा आकाश में विचरण कर रहा था, तभी उनके ऊपर एक बाज उनको खाने के लिए उनके ऊपर उड़ने लगा।

तब वह दोनों जेसे-तेसे भागने लगे  तब जमीन पर एक शिकारी भी उनको मारने के लिए आ गया ।

उस समय कबूतर भगवत नाम का स्मरण कर रहा था। और उसे कोई भय नही था,
पर उसकी पत्नी को  डर लग रहा था। वह सोच रही थी की  की मेरा पति तो  गुरु का  जप कर रहा है इसे कोई डर नही है। और हमारी दोनों और से मृत्यु निश्चित है।

या तो हमें बाज मार डालेगा या वो नीचे शिकारी है वो मार देगा, अब हमारा क्या होगा हम तो मरने वाले हैं।

तभी सदगुरू  की कृपा से वहाँ जमीन पर एक सांप आ जाता है और वह सांप वहां खड़े शिकारी को ढस लेता है। और  उसने जो तीर अपने धनुष पर लगा रखा था वो हाथ से छूट कर उस बाज के लग जाता है। और उनके पास दोनों तरफ से आई हुई मृत्यु टल जाती है।

इस पद से मुझे ये शिक्षा मिली कि चाहे कितनी भी विपत्ति क्यों ना आ जाए सदगुरू   का स्मरण नही छोड़ना चाहिए,
श्री  सदगुरू  हमें सारी विपत्तियों ये निकाल लेते हैं। बस उनका ही आसरा होना चाहिए।

Contributed by
Mrs Preeti ji

Monday, March 21, 2016

Judgement

A doctor entered the hospital in hurry after being called in for an urgent surgery. He answered the call asap, changed his clothes and went directly to the surgery block. He found the boy’s father pacing in the hall waiting for the doctor.

On seeing him, the father yelled, “Why did you take all this time to come? Don’t you know that my son’s life is in danger? Don’t you have any sense of responsibility?”

The doctor smiled and said, “I am sorry, I wasn't in the hospital and I came as fast as I could after receiving the call and now, I wish you’d calm down so that I can do my work”.

“Calm down?! What if your son was in this room right now, would you calm down? If your own son dies while waiting for doctor than what will you do??” said the father angrily.

The doctor smiled again and replied, “We will do our best by God’s grace and you should also pray for your son’s healthy life”.

“Giving advises when we’re not concerned is so easy” Murmured the father.

The surgery took some hours after which the doctor went out happy, “Thank goodness! your son is saved!” And without waiting for the father’s reply he carried on his way running by saying, “If you have any questions, ask the nurse”.

“Why is he so arrogant? He couldn't wait some minutes so that I ask about my son’s state” Commented the father when seeing the nurse minutes after the doctor left.

The nurse answered, tears coming down her face, “His son died yesterday in a road accident, he was at the burial when we called him for your son’s surgery. And now that he saved your son’s life, he left running to finish his son’s burial. Never judge anyone because you never know how their life is and what they’re going through.”

Contributed by
Mrs Shruti Chaabra ji

Sunday, March 20, 2016

गागर में सागर

एक बार एक बड़े संत सागर किनारे से गुज़र रहे होते हैं।उनकी निगाह एक छोटे बच्चे पर पड़ती है जो फूट फूट कर रो रहा था।संत के पूछने पर बच्चा हाथ में पकड़ा हुआ प्याला दिखा कर कहता है की मैं चाहता हूँ की ये समुद्र मेरे प्याले में आये लेकिन मेरी इतनी कोशिश के बाद भी ये इसमें नहीं आ रहा। ये सुनते ही संत की चीख निकल गयी और वो भी फूट फूट कर रोने लगे। ये देख कर बच्चे ने पूछा आप तो संत फ़कीर लगते हैं , आप क्यों रो रहें है और आपका प्याला कहाँ है? संत ने जवाब दिया,  ऐ मेरे बेटे , मेरा प्याला भी मेरे पास है , तू इस प्याले में इस समुद्र को भरना चाहता है और मैं इस दिमाग़ में पुरे के पूरे परमात्मा को भरना चाहता हूँ । मुझे तुमसे ये शिक्षा मिल गई है की जैसे इस प्याले में पूरा समुद्र नहीं आ सकता वैसे ही पूरे के पूरे परमात्मा को मैं अपने दिमाग में नहीं ला सकता। ये सुन कर बच्चा थोड़ी देर कुछ सोचता है और फिर प्याले को समुद्र में आगे जा कर छोड़ देता है और कहता हैं , ऐ सागर तू मेरे प्याले में नहीं आ सकता तो कोई बात नहीं , मेरा प्याला तो तेरे अंदर आ सकता है।ये देख कर वो संत उस बच्चे के पैरों में गिर जाते हैं और कहते है , की परमात्मा तू तो सारे का सारा मेरें में नहीं आ सकता लेकिन में तो सारे का सारा तेरे मेँ विलीन हो सकता हूँ।समझ गया जैसे सूरज तो पूरे का पूरा मेरे घर नहीं आ सकता लेकिन उसकी किरण आ सकती है।उसी प्रकार परमात्मा के गुण आ सकते हैं, परमात्मा की चेतना अंदर प्रकट हो सकती है।

Contributed by
Sh Deep ji

Saturday, March 19, 2016

तूफान का महत्व

एक मछली छोटे तालाब में अपने परिवार के साथ रहती थी तालाब में पानी कभी  सुख भी जाता था तो उस परमपिता परमेश्वर को याद करती थी पूजा तप आदि खूब किया करती थी एक दिन तेज़ तूफ़ान और बारिश आयी जिससे मछली का परिवार बहकर नदी में बहने लगा और मछली ने व् उसके परिवार ने नदी के विपरीत दिशा में बहने की काफी कोशिश् की और थक हारकर नदी के प्रवाह में ही बहकर ईश्वर को खूब कोसा और भला बुरा कहा और कुछ दिन में ही समुन्दर में पहुच गये। और वहाँ जाकर उनको अहसास हुआ क़ि ईश्वर ने हमको दरिया से निकालकर विशालता में ला दिया उसने हमारे जीवन में तूफ़ान लाकर अपने विशाल स्वरुप से जोड़ दिया ।अत: हर पल उसकी रजा में राजी रहो। वो पूरा समुन्दर दे रहा है और हम एक चम्मच लेकर खड़े है ।हम उसके हर कार्य के लिए कोसते रहते है nagetive सोचते रहते है ।अपनी सोच बदलो हर पल positive सोचो एक माँ अपने बच्चे का एक पल के लिए भी बुरा नहीं सोच सकती तो फिर वो पालनहार कैसे बुरा कर सकता है

Contributed by
Mrs Neena ji

Thursday, March 17, 2016

भगवान् से फ़रियाद

एक बार एक राजा था, वह जब भी मंदिर जाता, तो 2 फ़क़ीर उसके दाएं और बाएं बैठा करते! दाईं तरफ़ वाला कहता: "हे भगवान, तूने राजा को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी दे दे!"

बाईं तरफ़ वाला कहता: "ऐ राजा! भगवान ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे!"

दाईं तरफ़ वाला फ़क़ीर बाईं तरफ़ वाले से कहता: "भगवान से माँग! बेशक वह सबसे बैहतर सुनने वाला है!"

बाईं तरफ़ वाला जवाब देता: "चुप कर बेवक़ूफ़

एक बार राजा ने अपने वज़ीर को बुलाया और कहा कि मंदिर में दाईं तरफ जो फ़क़ीर बैठता है वह हमेशा भगवान से मांगता है तो बेशक भगवान् उसकी ज़रूर सुनेगा, लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है, तो तुम ऐसा करो कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उसमें अशर्फियाँ डाल दो और वह उसको दे आओ!

वज़ीर ने ऐसा ही किया... अब वह फ़क़ीर मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे फ़क़ीर को चिड़ाता हुआ बोला: "हुह... बड़ा आया 'भगवान् देगा...' वाला, यह देख राजा से माँगा, मिल गया ना?"

खाने के बाद जब इसका पेट भर गया तो इसने खीर से भरा बर्तन उस दूसरे फ़क़ीर को दे दिया और कहा: "ले पकड़... तू भी खाले, बेवक़ूफ़

अगले दिन जब राजा  आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला फ़क़ीर तो आज भी वैसे ही बैठा है लेकिन दाईं तरफ वाला ग़ायब है!

राजा नें चौंक कर उससे पूछा: "क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला?"

फ़क़ीर: "जी मिला ना बादशाह सलामत, क्या लज़ीज़ खीर थी, मैंने ख़ूब पेट भर कर खायी!"

राजा: "फिर?"

फ़क़ीर: "फ़िर वह जो दूसरा फ़क़ीर यहाँ बैठता है मैंने उसको देदी, बेवक़ूफ़ हमेशा कहता रहता है: 'भगवान् देगा, भगवान् देगा!'

राजा मुस्कुरा कर बोला: "बेशक, भगवान् ने उसे दे दिया!"

Contributed by
Mrs Neena ji

Monday, March 14, 2016

भाव भक्ति

एक व्यक्ति बहुत परेशान था।
उसके दोस्त ने उसे सलाह दी कि
कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो।

उसने एक कृष्ण भगवान की मूर्ति घर
लाकर उसकी पूजा करना शुरू कर दी।
कई साल बीत गए लेकिन ...
कोई लाभ नहीं हुआ।

एक दूसरे मित्र ने कहा कि
तू काली माँ कीपूजा कर,
जरूर तुम्हारे दुख दूर होंगे।
अगले ही दिन वो एक काली माँ
की मूर्ति घर ले आया।

कृष्ण भगवान की मूर्ति मंदिर के ऊपर
बने एक टांड पर रख दी और
काली माँ की मूर्ति मंदिर में रखकर
पूजा शुरू कर दी।

कई दिन बाद उसके दिमाग में ख्याल आया
कि जो अगरबत्ती, धूपबत्ती
काली जी को जलाता हूँ, उसे तो
श्रीकृष्ण जी भी सूँघते होंगे।
ऐसा करता हूँ कि श्रीकृष्ण का मुँह बाँध देता हूँ।

जैसे ही वो ऊपर चढ़कर श्रीकृष्ण का
मुँह बाँधने लगा कृष्ण भगवान ने उसका
हाथ पकड़ लिया। वो हैरान
रह गया और भगवान से पूछा -
इतने वर्षों से पूजाकर रहा था तब
नहीं आए! आज कैसे प्रकट हो गए?

भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा,
"आज तक तू एक मूर्ति
समझकर मेरी पूजा करता था।
किन्तु आज तुम्हें एहसास हुआ कि

"कृष्ण साँस ले रहा है "
बस मैं आ गया।"

Contributed by
Mrs Jyotsna ji