Saturday, October 31, 2015

सौ रुपये

एक पिता की युवा औलाद एकदम नकारा थी । तंग आकर पिता ने ऐलान कर दिया की आज से खाना तभी मिलेगा जब 100 रुपये कमाकर लायेंगा । माँ ने नकारे बेटे को चुपचाप 100 रुपये दे दिये और कहा शाम को आकर बोल देना की कमाये है ।
शाम को लडका घर आया तो पिता को 100 रूपये दिखायें,पिता ने कहा इस नोट को नाली में फेँक आओं.....
लडका तुरंत नोट नाली मे फेंक आया ।
पिता समझ चुका था की ये इसकी मेहनत की कमाई नही । पिता ने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया ताकि वो बेटे की मदद ना कर पायें । आज फिर बेटे को 100 रुपये कमाकर लाने थे तो लडके के पास मेहनत करके कमाने के अलावा कोई चारा ना बचा 1 शाम को वो जब 100 रुपये कमाकर घर लोटा तो पिता नें फिर से उस नोट को नाली मे डालने को कहा तो लडके ने साफ मना कर दिया क्यो की आज उसे इस नोट की कीमत पता चल गयी थी !!

Compiled & edited by
Sh Gaurav Narang ji

Thursday, October 29, 2015

कर्म का सिद्धांत

काशी के एक ब्राह्मण के सामने से एक गाय भागती हुई किसी गली में घुस गई. तभी वहां एक आदमी आया. उसने गाय के बारे में पूछा.
.पंडितजी माला फेर रहे थे इसलिए कुछ बोला नहीं बस हाथ से उस गली का इशारा कर दिया जिधर गाय गई थी.पंडितजी इस बात से अंजान थे कि वह आदमी कसाई है और गौमाता उसके चंगुल से जान बचाकर भागी थीं. कसाई ने पकड़कर गोवध कर दिया.अंजाने में हुए इस घोर पाप के कारण पंडितजी अगले जन्म में कसाई घर में जन्मे नाम पड़ा, सदना. पर पूर्वजन्म के पुण्यकर्मो के कारण कसाई होकर भी वह उदार और सदाचारी थे. कसाई परिवार में जन्मे होने के कारण सदना मांस बेचते तो थे भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी. एक दिन सदना को नदी के किनारे एक पत्थर पड़ा मिला.पत्थर अच्छा लगा इसलिए वह उसे मांस तोलने के लिए अपने साथ ले आए. वह इस बात अंजान थे कि यह वह वही शालिग्राम थे जिन्हें पूर्वजन्म नित्य पूजते थे. सदना कसाई पूर्वजन्म के शालिग्राम को इस जन्म में मांस तोलने के लिए बटखरे के रूप में प्रयोग करने लगे. आदत के अनुसार सदना ठाकुरजी के भजन गाते रहते थे. ठाकुरजी भक्त की स्तुति का पलड़े में झूलते हुए आनंद लेते रहते. बटखरे का कमाल ऐसा था कि चाहे आधे किलो तोलना हो, एक किलो या दो किलो सारा वजन उससे पक्का हो जाता. एक दिन सदना की दुकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले. उनकी नजर बाट पर पड़ी तो सदना के पास आए और शालिग्राम को अपवित्र करने के लिए फटकारा.उन्होंने कहा- मूर्ख, जिसे पत्थर समझकर मांस तौल रहे हो वे शालिग्राम भगवान हैं. ब्राह्मण ने सदना से शालिग्राम भगवान को लिया और घर ले आए.गंगा जल से नहलाया, धूप, दीप,चन्दन से पूजा की. ब्राह्मण को अहंकार हो गया जिस शालिग्राम से पतितों का उद्दार होता है आज एक शालिग्राम का वह उद्धार कर रहा है.रात को उसके सपने में ठाकुरजी आए और बोले- तुम जहां से लाए हो वहीँ मुझे छोड़ आओ. मेरा भक्त सदन कसाई की भक्ति में जो बात है वह तुम्हारे आडंबर में नहीं. ब्राह्मण बोला- प्रभु! सदना कसाई का पापकर्म करता है. आपका प्रयोग मांस तोलने में करता है. मांस की दुकान जैसा अपवित्र स्थान आपके योग्य नहीं.भगवान बोले- भक्ति में भरकर सदना मुझे तराजू में रखकर तोलता था मुझे ऐसा लगता है कि वह मुझे झूला रहा हो. मांस की दुकान में आने वालों को भी मेरे नाम का स्मरण कराता है.मेरा भजन करता है. जो आनन्द वहां मिलता था वह यहां नहीं. तुम मुझे वही छोड आओ. ब्राह्मण शालिग्राम भगवान को वापस सदना कसाई को दे आए. ब्राह्मण बोला- भगवान को तुम्हारी संगति ही ज्यादा सुहाई. यह तो तुम्हारे पास ही रहना चाहते हैं. ये शालिग्राम भगवान का स्वरुप हैं. हो सके तो इन्हें पूजना बटखरा मत बनाना. सदना ने यह सुना अनजाने में हुए अपराध को याद करके दुखी हो गया. सदना ने प्राश्चित का निश्चय किया और भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए निकल पड़ा. वह भी भगवान के दर्शन को जाते एक समूह में शामिल हो गए लेकिन लोगों को पूछने पर उसने बता दिया कि वह कसाई का काम करता था.लोग उससे दूर-दूर रहने लगे. उसका छुआ खाते-पीते नहीं थे. दुखी सदना ने उनका साथ छोड़ा और शालिग्रामजी के साथ भजन करता अकेले चलने लगा. सदना को प्यास लगी थी. रास्ते में एक गांव में कुंआ दिखा तो वह पानी पीने ठहर गया. वहां एक सुन्दर स्त्री पानी भर रही थी. वह सदना के सुंदर मजबूत शरीर पर रीझ गई.उसने सदना से कहा कि शाम हो गई है. इसलिए आज रात वह उसके घर में ही विश्राम कर लें. सदना को उसकी कुटिलता समझ में न आई, वह उसके अतिथि बन गए.रात में वह स्त्री अपने पति के सो जाने पर सदना के पास पहुंच गई और उनसे अपने प्रेम की बात कही. स्त्री की बात सुनकर सदना चौंक गए और उसे पतिव्रता रहने को कहा. स्त्री को लगा कि शायद पति होने के कारण सदना रुचि नहीं ले रहे. वह चली गई और वह गई और सोते हुए पति का गला काट लाई.सदना भयभीत हो गए. स्त्री समझ गई कि बात बिगड़ जाएगी इसलिए उसने रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया. पड़ोसियों से कह दिया कि इस यात्री को घर में जगह दी. चोरी की नीयत से इसने मेरे पति का गला काट दिया.सदना को पकड़ कर न्यायाधीश के सामने पेश किया गया. न्यायाधीश ने सदना को देखा तो ताड़ गए कि यह हत्यारा नहीं हो सकता. उन्होने बार-बार सदना से सारी बात पूछी.सदना को लगता था कि यदि वह प्यास से व्याकुल गांव में न पहुंचते तो हत्या न होती. वह स्वयं को ही इसके लिए दोषी मानते थे. अतः वे मौन ही रहे.न्यायाधीश ने राजा को बताया कि एक आदमी अपराधी है नहीं पर चुप रहकर एक तरह से अपराध की मौन स्वीकृति दे रहा है. इसे क्या दंड दिया जाना चाहिए? राजा ने कहा- यदि वह प्रतिवाद नहीं करता तो दण्ड अनिवार्य है. अन्यथा प्रजा में गलत सन्देश जाएगा कि अपराधी को दंड नहीं मिला. इसे मृत्युदंड मत दो,  हाथ काटने का हुक्म दो. सदना का दायां हाथ काट दिया गया. सदना ने अपने पूर्वजन्म के कर्म मानकर चुपचाप दंड सहा और जगन्नाथपुरी धाम की यात्रा शुरू की. धाम के निकट पहुंचे तो भगवान ने अपने सेवक राजा को प्रियभक्त सदना कसाई की सम्मान से अगवानी का आदेश दिया. प्रभु आज्ञा से राजा गाजे-बाजे लेकर अगुवानी को आया. सदना ने यह सम्मान स्वीकार नहीं किया तो स्वयं ठाकुरजी ने दर्शन दिए. उन्हें सारी बात सुनाई- तुम पूर्वजन्म में ब्राहमण थे. तुमने संकेत से एक कसाई को गाय का पता बताया था. तुम्हारे कारण जिस गाय की जान गई थी वही स्त्री बनी है जिसके झूठे आरोपों से तुम्हारा हाथ काटा गया. उस स्त्री का पति पूर्वजन्म का कसाई बना था जिसका वध कर गाय ने बदला लिया है. भगवान जगन्नाथजी बोले- सभी के शुभ और अशुभ कर्मों का फल मैं देता हूं. अब तुम निष्पाप हो गए हो. घृणित आजीविका के बावजूद भी तुमने धर्म का साथ न छोड़ा.इसलिए तुम्हारे प्रेम को मैंने स्वीकार किया. मैं तुम्हारे साथ मांस तोलने वाले तराजू में भी प्रसन्न रहा. भगवान के दर्शन से सदनाजी को मोक्ष प्राप्त हुआ.

Compiled and edited by
Sh. Bimal ji

Friday, October 23, 2015

सच्चा संत

एक संत थे बड़े निस्पृह, सदाचारी एवं लोकसेवी। जीवन भर निस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई में लगे रहते।एक बार विचरण करते हुए देवताओं की टोली उनकी कुटिया के समीप से निकली। संत साधनारत थे, साधना से उठे, देखा देवगण खड़े हैं, आदरसम्मान किया, आसन दिया।देवतागण बोले- “आपके लोकहितार्थ किए गए कार्यों को देखकर हमें प्रसन्नता हुई, आप जो चाहें वरदान माँग लें।“ संत विस्मय से बोले- “सब तो है मेरे पास कोई इच्छा भी नहीं है, जो माँगा जाए।“ देवगण एकस्वर में बोले- “आप को माँगना ही पड़ेगा अन्यथा हमारा बड़ा अपमान होगा।“ संत बड़े असमंजस में पड़े कि कोई तो इच्छा शेष नहीं है माँगे तो क्या माँगे, बड़े विनीत भाव से बोले- “आप सर्वज्ञ हैं, स्वयं समर्थ हैं, आप ही अपनी इच्छा से दे दें मुझे स्वीकार होगा।“देवता बोले- “तुम दूसरों का कल्याण करो!”संत बोले- “क्षमा करें देव! यह दुष्कर कार्य मुझ से न बन पड़ेगा।“देवता बोले- “इसमें दुष्कर क्या है?”
संत बोले- “मैंने आजतक किसी को दूसरा समझा ही नहीं सभी तो मेरे अपने हैं, फिर दूसरों का कल्याण कैसे बन पड़ेगा?”देवतागण एक दूसरे को देखने लगे कि संतों के बारे में बहुत सुना था आज वास्तविक संत के दर्शन हो गये।देवताओं ने संत की कठिनाई समझ कर अपने वरदान में संशोधन किया।
“अच्छा आप जहाँ से भी निकलेंगे और जिस पर भी आपकी परछाई पड़ेगी उस उसका कल्याण होता चला जाएगा।“संत ने बड़े विनम्र भाव से प्रार्थना की- “हे देवगण! यदि एक कृपा और करदें, तो बड़ा उपकार होगा। मेरी छाया से किसका कल्याण हुआ कितनों का उद्धार हुआ, इसका भान मुझे न होने पाए, अन्यथा मेरा अहंकार मुझे ले डूबेगा।“देवतागण संत के विनम्र भाव सुनकर नतमस्तक हो गए।कल्याण सदा ऐसे ही संतों के द्वारा संभव है।...

Compiled and edited by
Sh Deep ji

Wednesday, October 21, 2015

न्याय

एक वैश्या मरी और उसी दिन उसके सामने रहने वाला बूढ़ा सन्यासी भी मर गया,संयोग की बात है।देवता लेने आए सन्यासी को नरक में और वैश्या को स्वर्ग में ले जाने लगे। संन्यासी एक दम  खड़ा हो गया,तुम ये कैसा अन्याय कर रहे हो? मुझे नरक में और वैश्या को स्वर्ग में ले जा रहे हो,जरूर कोई भूल हो गई है. उसे परमात्मा के पास ले जाया गया, परमात्मा ने कहा इसके पीछे एक गहन कारण है,-वैश्या शराब पीती थी,भोग में रहती थी,पर जब तुम मंदिर में बैठकर भजन गाते थे,धूप दीप जलाते थे,घंटियां बजाते थे,,,तब वह सोचती थी कब मेरे जीवन में यह सौभाग्य होगा,मैं मंदिर में बैठकर भजन कर पाऊंगी कि नहीं,वह तिल। तिल रोती थी,और तुम्हारे धूप दीप की सुगंध जब उसके घर मे पहुंचती थी तो वह अपना अहोभाग्य समझती थी,घंटियों की आवाज सुनकर मस्त हो जाती थी।लेकिन तुम्हारा मन पूजापाठ करते हुए भी यही सोचता कि वैश्या है तो सुंदर पर वहां तक कैसे पंहुचा जाए?तुम हिम्मत नही जुटा पाए,,तुम्हारी प्रतिष्ठा आड़े आई--गांव भर के लोग तुम्हें संयासी मानते थे।
जब वैश्या नाचती थी,शराब बंटती थी,तुम्हारे मन में वासना जगती थी इसलिए वैश्या को स्वर्ग लाया गया और तुम्हें नरक में।वेश्या को विवेक पुकारता था। ,वह प्रार्थना करती थी तुम इच्छा रखते थे वासना की।वह कीचड़ में थी पर कमल की भांति ऊपर उठती गई। और तुम कमल बनकर आए थे कीचड़ में धंसे रहे।

Source ~internet

दर्शन

भगवान् के एक बहुत बड़े भक्त थे। सर्वदा ईश्वर भक्ति व परोपकार के कार्यों में लीन रहते। एक बार नारद जी पृथ्वी पर भ्रमण करने आये।
भक्त ने नारद जी से विनती की – ” देवर्षि, मेरे मन में प्रभु के दर्शन की बहुत लालसा है। जब भी आप प्रभु से मिलें, तब उनसे पूछ कर बताईये कि मुझे उनके दर्शन कब होंगे ?” नारद जी ने हामी भर दी। कुछ समय बाद नारद जी फिर से पृथ्वी पर आये। भक्त ने उत्सुकता व विनम्रता पूर्वक नारद जी से अपना प्रश्न दोहराया। ‘मैंने प्रभु से पूछा था उनका कथन है कि हम जिस वृक्ष के नीचे खड़े हैं उसमें जितने पत्ते हैं ,उतने वषों के बाद तुम्हे प्रभु के दर्शन होंगे। ” नारद जी की बात सुन कर भक्त भाव विभोर हो कर नाचने लगे – मन में आनंद का भाव था, बार बार यही कह रहे थे – “मेरे प्रभु आयेंगे ,मुझे प्रभु के दर्शन होंगे।” उसी समय वहां भगवान् प्रकट हो गए। भक्त अपने प्रभु के दर्शन कर भाव विभोर था। उस समय नारद जी ने कहा – भगवन , आपने मुझसे कहा था कि इस वृक्ष पर जितने पत्ते हैं उतने जन्म के बाद आप आयेंगे लेकिन आप तो अभी आ गए। मेरा कथन भी इस भक्त के सामने झूठा पड़ गया। ”
“नारद मैंने सत्य कहा था। लेकिन भक्त की भक्ति के सामने मैं भी विवश हूँ। मुझे लगा था कि इतना अधिक समय सुन कर भक्त के मन में निराशा होगी ,लेकिन इसके मन में तो और अधिक भक्तिभाव आ गया। इसलिए मुझे अभी आना पडा।


Source-internet

The suitcase

A man died..When he realized it, he saw God coming closer with a suitcase in his hand.
Dialog between God and Dead Man:

God: Alright son, it’s time to go

Man: So soon? I had a lot of plans...

God: I am sorry but, it’s time to go

Man: What do you have in that suitcase?

God: Your belongings

Man: My belongings? You mean my things... Clothes... money...

God: Those things were never yours, they belong to the Earth

Man: Is it my memories?

God: No. They belong to Time

Man: Is it my talent?

God: No. They belong to Circumstance

Man: Is it my friends and family?

God: No son. They belong to the Path you travelled

Man: Is it my wife and children?

God: No. they belong to your Heart

Man: Then it must be my body

God: No No... It belongs to Dust

Man: Then surely it must be my Soul!

God: You are sadly mistaken son. Your Soul belongs to me.

Man with tears in his eyes and full of fear took the suitcase from the God's hand and opened it...

Empty...

With heartbroken and tears down his cheek he asks God...

Man: I never owned anything?

God: That’s Right. You never owned anything.

Man: Then? What was mine?

God: your MOMENTS.
Every moment you lived was yours.

Do Good in every moment.Think Good in every moment.Thank God for every moment

Compiled and edited by
Mrs Preeti ji

Trouble Tree

I hired a plumber to help me repair an old farmhouse.He already had a rough and tiresome day.
* a flat tire
* his electric drill fault
* his old car broke down.
* his tiffin was spoilt
* he lost his wallet
* his bank was calling for loan repayments
In all the tension and stress he finished my repairs. Since his car broke down, I drove him home.
While I drove him home, he sat silently, but I could mark his agony and restlessness. On arriving, he invited me in to meet his family.
As we walked toward the front door, he paused at a small tree, touching the tips of the branches with both hands and closed his eyes.When the door opened, he was smiling and happy. In seconds he underwent an amazing transformation.He hugged his two small children, gave his wife a kiss, laughed, and never even slightly made them feel the troubles that he had encountered that day.I was astonished and curious. Seeing my inquisitive eyes he said, “Oh, that's my Trouble Tree. My best friend.  My trouble carrier for the night”.He replied. "I know I can't help having troubles on the job, but one thing's for sure. Those troubles don't belong in the house with my wife and the children. So I just hang them up on the tree every night when I come home and ask God to take care of them. Then in the morning I pick them up again.”He smiled and shared a secret. He said, “when I come out in the morning to pick 'em up, there aren't nearly as many as I remember hanging there the night before!!”Life may be a burden of worries, but there is a way to keep our loved ones untouched from these worries. Time will heal every wound. Whoever is tensed today,
look for a tree.
Compiled and edited by
Ms Nita ji 

भक्ति प्रेम

बरसाने में एक संत किशोरी जी का बहुत भजन करते थे और रोज ऊपर दर्शन करने जाते राधा रानी के महल में।बड़ी निष्ठा ,बड़ी श्रद्धा थी किशोरी जी के चरणों में उन संत की।एक बार उन्होंने देखा की भक्त राधा रानी को बरसाने मन्दिर में पोशाक अर्पित कर रहे थे तो उन महात्मा जी के मन में भाव आया की मैंने आज तक किशोरी जी को कुछ भी नहीं चढ़ाया और लोग आ रहे है तो कोई फूल चढ़ाता है , कोई भोग लगाता है , कोई पोशाक पहनाता है और मैंने कुछ भी नही दिया,अरे मै कैसा भगत हूँ ।
तो उन महात्मा जी ने उसी दिन निश्चय कर लिया की मै अपने हाथो से बनाकर राधा रानी को सूंदर सी एक पोशाक पहनाऊंगा।ये सोचकर उसी दिन से वो महात्मा जी तैयारी में लग गए और बहुत प्यारी सुंदर सी एक पोशाक बनाई,पोशाक तैयार होने में एक महीना लगा।
कपड़ा लेकर आयें,अपने हाथो से गोटा लगाया और बहुत प्यारी पोशाक बनाई।सूंदर सी पोशाक जब तैयार हो गई तो वो पोशाक अब लेकर ऊपर किशोरी जी के चरणों में अर्पित करने जा रहा थे।अब बरसाने की तो सीढिया है काफी ऊची तो वो महात्मा जी उपर चढ़कर जा रहे है तो देखियें कैसे कृपा करती है वो हमारी राधा रानी।आधी सीढियों तक ही पहुँचें होंगे महात्मा जी की तभी बरसाने की एक छोटी सी लड़की उस महात्मा जी को बोलती है की बाबा ये कहा ले जा रहे हो आप ? आपके हाथ में ये क्या है ? वो महात्मा जी बोले की लाली ये मै किशोरी जी के लिए पोशाक बनाके उनको पहनाने के लिए ले जारयो हूँ बृज भाषा में जबाब दिय !वो लड़की बोली अरे बाबा राधा रानी पे तो बहोत सारी पोशाक है तो तू ये मोकू देदे ना तो महात्मा जी बोले की बेटी तोकू मै दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा ये तो मै अपने हाथ से बनाकर राधा रानी के लिये लेकर जारयो हूँ तोकू ओर दिलवा दूँगो ।लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा का दुपट्टा पकड़ लिया बाबा ये मोकू देदे पर सन्त भी जिद करने लगे की दूसरी दिलवाऊंगा ये नहीं दूंगा लेकिन वो बच्ची भी इतनी तेज थी की संत के हाथ से छुड़ाकर पोशाक भागी , अब महात्मा जी बहुत दुखी हो गए ,बूढ़े महात्मा जी अब कहाँ ढूंढे उसको तो वही सीढियो पर बैठकर रोने लगे जब कई संत मंदिर से निकले तो पूछा महाराज क्यों रो रहे हो ? तो सारी बात बताई की जैसे-तैसे तो बुढ़ापे में इतना परिश्रम करके ये पोशाक बनाकर लाया राधा रानी को पहनाता पर वासे पहले ही एक छोटी सी लाली लेकर भाग गई तो क्या करु मै अब ?वो बाकी संत बोले अरे अब गई तो गई कोई बात नहीं अब कब तक रोते रहोगे चलो ऊपर दर्शन करलो।
रोना बन्द हुआ लेकिन मन ख़राब था क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई तो अनमने मन से राधा रानी का दर्शन करने संत जा रहे थे और मन में ये ही सोच रहे है की मुझे लगता है की किशोरी जी की इच्छा नहीं थी , शायद राधा रानी मेरे हाथो से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी ,ऐसा सोचकर बड़े दुःखी होकर जा रहे है ।और अब जाकर अंदर खड़े हुए दर्शन खुलने का समय हुआ और जैसे ही श्री जी का दर्शन खुला,पट खुले तो वो महात्मा क्या देख रहें है की जो पोशाक वो बालिका लेकर भागी थी वो ही पोशाक पहनकर मेरी राधा रानी बैठी हुई है,उसी वस्त्र को धारण करके किशोरी जी बैठी थी। ये देखते ही महात्मा की आँखों से आँसू बहने लगे और महात्मा बोले की किशोरी जी मै तो आपको देने ही ला रहा था लेकिन आपसे इतना भी सब्र नहीं हुआ मेरे से छीनकर भागी आप तो।किशोरी जी ने कहा की बाबा ये केवल वस्त्र नहीं नहीं , ये केवल पोशाक नहीं है या में तेरो प्रेम छुपो भयो है और प्रेम को पाने के लिए तो दौड़ना ही पड़ता है,भागना ही पड़ता है ।
ऐसी है हमारी राधा रानी प्रेम प्रतीमूर्ति,प्रेम की अद्भुत परिभाषा है।।

Compiled and edited by
Mrs Bhavya ji

Tuesday, October 20, 2015

भक्त की प्रतीक्षा

भगवान् के एक बहुत बड़े भक्त थे। सर्वदा ईश्वर भक्ति व परोपकार के कार्यों में लीन रहते। एक बार नारद जी पृथ्वी पर भ्रमण करने आये। भक्त ने नारद जी से विनती की – ” देवर्षि, मेरे मन में प्रभु के दर्शन की बहुत लालसा है। जब भी आप प्रभु से मिलें, तब उनसे पूछ कर बताईये कि मुझे उनके दर्शन कब होंगे ?” नारद जी ने हामी भर दी।कुछ समय बाद नारद जी फिर से पृथ्वी पर आये। भक्त ने उत्सुकता व विनम्रता पूर्वक नारद जी से अपना प्रश्न दोहराया। ‘मैंने प्रभु से पूछा था उनका कथन है कि हम जिस वृक्ष के नीचे खड़े हैं उसमें जितने पत्ते हैं ,उतने वषों के बाद तुम्हे प्रभु के दर्शन होंगे। ” नारद जी की बात सुन कर भक्त भाव विभोर हो कर नाचने लगे – मन में आनंद का भाव था, बार बार यही कह रहे थे  “मेरे प्रभु आयेंगे ,मुझे प्रभु के दर्शन होंगे। ”उसी  समय वहां भगवान् प्रकट हो गए। भक्त अपने प्रभु के दर्शन कर भाव विभोर था। उस समय नारद जी ने कहा – भगवन , आपने मुझसे कहा था कि इस वृक्ष पर जितने पत्ते हैं उतने जन्म के बाद आप आयेंगे लेकिन आप तो अभी आ गए। मेरा कथन भी इस भक्त के सामने झूठा पड़ गया। ” “नारद मैंने सत्य कहा था। लेकिन भक्त की भक्ति के सामने मैं भी विवश हूँ। मुझे लगा था कि इतना अधिक समय सुन कर भक्त के मन में निराशा होगी ,लेकिन इसके मन में तो और अधिक भक्तिभाव आ गया। इसलिए मुझे अभी आना पडा।

खेती

एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे . एक दिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला की मुझे अपना खेत कुछ साल के लिये उधार दे दीजिये ,मैं उसमे खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा, वह अतिश्रेष्ठ व्यक्ति बहुत दयालु थे
उन्होंने उस निर्धन व्यक्ति को अपना खेत दे दिया और साथ में पांच किसान भी सहायता के रूप में खेती करने को दिये और कहा की इन पांच  किसानों को साथ में लेकर खेती करो, खेती करने में आसानी होगी,  इस से तुम और अच्छी फसल की खेती करके कमाई कर पाओगे। वो निर्धन आदमी ये देख के बहुत खुश हुआ की उसको उधार में खेत भी मिल गया और साथ में पांच सहायक किसान भी मिल गये। लेकिन वो आदमी अपनी इस ख़ुशी में बहुत खो गया, और वह पांच किसान अपनी मर्ज़ी से खेती करने लगे और वह निर्धन आदमी अपनी ख़ुशी में डूबा रहा,  और जब फसल काटने का समय आया तो देखा की फसल बहुत ही ख़राब  हुई थी , उन पांच किसानो ने खेत का उपयोग अच्छे से नहीं किया था न ही अच्छे बीज डाले ,जिससे फसल अच्छी हो सके जब वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति ने अपना खेत वापस माँगा तो वह निर्धन व्यक्ति रोता हुआ बोला की मैं बर्बाद हो गया , मैं अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और इन पांच किसानो को नियंत्रण में न रख सका न ही इनसे अच्छी खेती करवा सका।
कथा का मर्म~~
वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति हैं -''भगवान" निर्धन व्यक्ति हैं -"हम"  खेत है -"हमारा शरीर" । पांच किसान हैं हमारी इन्द्रियां- आँख,कान,नाक,जीभ और मन |प्रभु ने हमें यह शरीर रुपी खेत अच्छी फसल(कर्म) करने को दिया है और हमें इन पांच किसानो को अर्थात इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रख कर कर्म करने चाहियें ,जिससे जब वो दयालु प्रभु जब ये शरीर वापस मांग कर हिसाब करें तो हमें रोना न पड़े

Compiled and. Edited by Sh Manish Uttreja ji

Tuesday, October 13, 2015

भाग्ये का खेल

एक ग़रीब आदमी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् पूछते हैं क्या चाहिए ?
आदमी कहता है मैं अमीर बनना चाहता हूँ। भगवान् कहते हैं ठीक है लेकिन शर्त ये है कि तू पानी में डूबकर मरेगा। वो आदमी स्वीकार कर लेता है और मन ही मन निश्चय करता है कि कभी पानी में सफर नहीं करेगा।
ग़रीब आदमी की लॉटरी लग जाती है, तो सोचता है कि तट पर ही धूप सेकूगा, सागर में नहीं नहाउंगा। उसी समय कोई उसे लॉटरी में जहाज से सैर करने का एक फ्री टिकट दे देता है, मन में लालच आ जाता है। सोचता है– मैं अकेला थोड़ी ही हूँ, वहाँ तो बहुत लोग होंगे, मुझे मारने के लिए भगवान् सबको तो मारेगें नहीं। जहाज पर सवार हो जाता है।
तट से दूर पहुँचने पर जहाज डूबने लगता है। ग़रीब आदमी भगवान् को पुकारता है, पूछता है, मेरे कारण आप ढाई हजार लोगों को क्यों मार रहे हो?
भगवान् – ये तो मैं ही जानता हूँ कि कैसे-कैसे ये 2500 लोग मेंने एक जगह इकट्ठे किये। 

Thursday, October 1, 2015

सद्व्यवहार

एक राजा ने एक दिन स्वप्न देखा कि कोई परोपकारी साधु उससे कह रहा है कि बेटा! कल रात को तुझे एक विषैला सर्प काटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जायेगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है, पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुम्हें काटेगा।
प्रातःकाल राजा सोकर उठा और स्वप्न की बात पर विचार करने लगा। धर्मात्माओं को अक्सर सच्चे ही स्वप्न हुआ करते हैं। राजा धर्मात्मा था, इसलिए अपने स्वप्न की सत्यता पर उसे विश्वास था। वह विचार करने लगा कि अब आत्म- रक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए?सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुँचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया।
संध्या होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह- जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुँचाने या छेड़- छाड़ करने का प्रयत्न न करे। रात को ठीक बारह बजे सर्प अपनी बाँबी में से फुसकारता हुआ निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे- जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख- देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, स्थान- स्थान पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था। क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे। जैसे- जैसे वह आगे चलता गया, वैसे ही वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुँचाने की चेष्टा नहीं करते। यह असाधारण सौजन्य देखकर सर्प के मन में स्नेह उमड़ आया। सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मन्त्र- मुग्ध कर लिया था। कहाँ वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुँचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूँ तो किस प्रकार काटूँ? यह प्रश्न उससे हल न हो सका। राजा के पलंग तक जाने तक सर्प का निश्चय पूर्ण रूप से बदल गया।
सर्प के आगमन की राजा प्रतीक्षा कर रहा था। नियत समय से कुछ विलम्ब में वह पहुँचा। सर्प ने राजा से कहा- ‘हे राजन्! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूँ। लो इसे अपने पास रखो।’ इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सर्प उलटे पाँव अपने घर वापस चला गया।भलमनसाहत और सद्व्यवहार ऐसे प्रबल अस्त्र हैं, जिनसे बुरे- से स्वभाव के दुष्ट मनुष्यों को भी परास्त होना पड़ता है...!!!"

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Smt Kanchan ji
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