Wednesday, June 10, 2015

विश्वास

वृन्दावन की एक गोपी हर रोज़ दही बेचने मथुरा जाती थी।  एक दिन व्रज में एक संत आये. फलस्वरूप गोपी भी कथा  सुनने गयी.  संत कथा में कह रहे थे की भगवान नाम की बहुत महिमा है. उन का स्मरण मात्र से ही मनुष्य भवसागर पार कर जाता है. अगले दिन जब गोपी दूध बेचने जा रही थी तो उसे संत की बात याद आ गयी।  उसे हर रोज़ की भाँती यमुना पार करनी थी।  उस ने सोचा की जब भगवान के नाम के स्मरण मात्र से भाव सागर पार हो सकता है तो क्या यह छोटी सी नदी पार नहीं हो सकती।  उस ने सोचा की आज वो नदी प्रभु को स्मरण करते हुए ही पार करेगी इस से उस के नाव के पैसे भी बच जाएंगे।  उस ने भगवान का नाम ले कर नदी पर पाँव रखा।  उसे ऐसा लगा मानो वो धरती पर चल रही हो. इस प्रकार उसने नदी पार कर  ली।  वो इस चमत्कार से बहुत प्रसन्न हुई. अब यह सिलसिला हर रोज़ चलने लगा।  एक दिन संत गोपी के घर पधारे।  गोपी ने संत का धन्यवाद किया और कहा की आप के बताये हुए सुझाव  से मैँ  नदी बिना पैसो के चल कर पार   कर लेती हूँ.  संत को संदेह  हुआ।  उन्होंने कहा की आज में भी तुम्हारे साथ यमुना पार करूंगा। दोनों नदी के  तट  पर गए।  संत ने गोपी से कहा की पहले तुम नदी पार करो और फिर मैं पीछे आऊंगा।  गोपी ने पहले की तरह भगवान को याद किया और नदी पार  कर गयी. संत हैरान रह गया।  संत ने सोचा  की अब मैं भी कोशिश करता हूँ. परन्तु जैसे ही  उस ने नदी में पैर रखा वो पानी में गिर गया।  गोपी ने कहा की आप अब मेरा हाथ पकड़ो हम इकठे नदी पार करेंगे।  संत ने गोपी का हाथ पकड़ा और यमुना में पैर रखा।  अब वो हैरान रह गया की वो नदी पर आसानी से चल पा रहा है. . वो गोपी  के चरणो में गिर पड़ा और बोले की तुमने सही अर्थो में भगवान का आश्रय लिया है।  मैंने नाम की महिमा बतायी तो थी परन्तु आश्रय नहीं  लिया।  गोपी तुम धन्य हो






 Edited and compiled by : Smt Kanchan ji

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